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एकता में शक्ति का पाठ पढ़ाने वाला जैन दर्शन फिर जैन समाज में एकता का अभाव क्यों ….?

Reported By : Padmavat Media
Published : February 17, 2025 4:51 PM IST

एकता में शक्ति का पाठ पढ़ाने वाला जैन दर्शन फिर जैन समाज में एकता का अभाव क्यों ….?

संगठन में शक्ति है हमेशा से है एकता की जरूरत

थांदला । एक जमाना था जब वेस्टइंडीज क्रिकेट टीम को हराना सपना समझा जाता था बीते विश्वकप में वह क्वालिफाई भी नही कर पाई। इस तरह 90 के दशक में ऑस्ट्रेलिया क्रिकेट टीम विश्व की सबसे सशक्त टीम बनकर सामने आई। उस दौर में उस टीम को हराना भी सपने से कम नही था। उन्होंने अपने वर्चस्व पर गर्व करते हुए पूरे विश्व को चुनौती दी कि क्या कोई टीम उन्हें हरा सकती है …? इस चुनौती को स्वीकार करते हुए विश्व के दिग्गज क्रिकेटरों की एक संयुक्त टीम विश्व एकादश (वर्ल्ड -11) ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ मैदान में उतरी लेकिन परिणाम वही का वही रहा एक बार फिर आस्ट्रेलिया ने सबको हरा दिया। विश्व के श्रेष्ठतम खिलाड़ी होने के बावजूद वर्ल्ड-11 की हार ने सबको चौका दिया। उसके कारण पर यदि नजर दौड़ाई जाए तो केवल एक ही बात उभर कर सामने आती है कि विश्व एकादश की टीम में एकता नही थी वे अपना वर्चस्व दिखाने में स्वयं के साथ टीम को भी हरा बैठें। यदि वे अपने से ज्यादा टीम को महत्व देते व टीम के योग्य खिलाड़ी को उत्साहित करते तो नतीजा अपने पक्ष में कर सकते थे …
खैर ….!  अब इसी परिप्रेक्ष्य में जैन समाज को देखें ….. जैन दर्शन  विश्व का श्रेष्ठतम दर्शन है। तीर्थंकरों से निकली ज्ञान की गंगा में आज सारा विश्व डुबकी लगा रहा है यही नही आज का वैज्ञानिक युग भी इससे अछूता नही है। जैन दर्शन में वैज्ञानिक दर्शन है, जिसने सभ्यता, शिक्षा, कृषि, अस्त्र-शस्त्र विद्या सहित 64 और 72 कलाओं के ज्ञान से दुनिया को परिचय करवाया। जैन तीर्थंकरों ने जीवन जीने की कला के साथ निर्वाण की कला भी सिखलाई, जिसका प्रभाव पूरे विश्व में देखा जा सकता है। लेकिन समस्या यह है कि इतने प्रभावशाली दर्शन होने के बावजूद भी आज जैन दर्शन के अनुयायियों  की संख्या नगण्य है …।विश्व की जनसंख्या में जैनों की संख्या मात्र 0.02% है तो भारत में केवल 0.5% ही जैन समाज के लोग रहते है। यही कारण है कि वर्तमान में जैन समाज को अल्पसंख्यक घोषित कर दिया गया है। यह तब है जब जैन समाज आर्थिक दृष्टि से, दानशीलता में, नैतिकता में, देश प्रेम में, सामाजिक गतिविधियों में भारत का सबसे समृद्ध समुदाय माना जाता है। जैन समाज जहाँ भी रहता है, वहाँ अपनी दानशीलता और परोपकारिता के लिए अपनी अलग ही पहचाना रखता है व अन्य धर्म सम्प्रदाय में भी उसे सम्मान की नजरों से देखा जाता है। लेकिन फिर भी समाज की संख्या क्यों नहीं बढ़ रही …? क्यों नहीं यह दर्शन हर घर तक पहुँच रहा हैं ….? क्यों आज जैन समाज के लोग अपनी आस्था के प्रतीक के लिए आंदोलन करने पर भी मजबूर हो रहा है …?
उत्तर वही है जो वर्ल्ड-11 की हार में था याने जैन समाज में एकता की कमी …..

आज जैन समाज विभिन्न संप्रदायों और गच्छों में बंटा हुआ है। हर कोई अपने मत को श्रेष्ठ साबित करने में लगा हुआ है। एक पंथ दूसरे पंथ को तो एक सम्प्रदाय दूसरी सम्प्रदाय को नीचा दिखाने में लगी हुई है।याने जैन समाज अपने ही समाज के व्यक्ति को नीचा दिखाने में व्यस्त है। जबकि जैन धर्म के मूल सिद्धांत की बात करें तो इसके महाव्रत और अणुव्रत सभी में समान हैं मतभेद तो केवल छोटी-छोटी मान्यताओं में हैं, जो संत महात्माओं ने मोक्ष लक्ष्य से पतित होकर संसार लोकैषणा में फंसकर पैदा किये लगता है। आज ये विघटनकारी नीति कहे या फिर बदलाव इतने ज्यादा बड़े हो गए है कि इसमें जैन समाज की प्रगति व शान्ति नष्ट हो गई है। आजका जैनी अपने आपको बचाने व अपनी आस्था के प्रतीक को बचाने के लिए सड़कों पर उतर आया है। यदि हमें सामाजिक बदलाव लाना है व एक बार फिर अपने पतन को रोकना है तो पंथ, सम्प्रदाय से ऊपर उठकर एक होना होगा तभी हमारी संख्या बढ़ेगी हमारा धर्म घर-घर में प्रसारित होगा जो हमारें हित के साथ राष्ट्रहित में आवश्यक होगा। इसके लिए जैन सन्तों को भी आगे आना होगा व अपने वर्चस्व की लड़ाई से ऊपर उठकर नैतिकता के आधार पर सकल जैन समाज के हित में भगवान महावीरस्वामी के सिद्धांतों को आत्मसात करना होगा। आखिर इसके लिए ही तो उन्होंनें संयम लिया था।

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