उदयपुर में बढ़ता आवारा कुत्तों का आतंक: पर्यटन और जनसुरक्षा पर संकट, नगर निगम की लापरवाही से बिगड़ते हालात
उदयपुर । झीलों की नगरी उदयपुर, जो विश्व पर्यटन मानचित्र पर अपनी खास पहचान रखता है, आज एक गंभीर समस्या से जूझ रहा है। आवारा कुत्तों का आतंक शहर की सड़कों, रिहायशी इलाकों और प्रमुख पर्यटन स्थलों तक फैल चुका है। स्थिति इतनी भयावह हो चुकी है कि गाड़ियों और राहगीरों का पीछा करने, काटने और आवारा कुत्तों के कारण सड़क दुर्घटनाओं के मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं।ये आवारा कुत्ते न केवल जनसुरक्षा के लिए खतरा बन रहे हैं, बल्कि इनके रातभर भौंकने, रोने और हुंकार भरने से पर्यटकों, विद्यार्थियों, बुजुर्गों और बीमार लोगों की नींद भी बाधित हो रही है। यह समस्या वर्षों से बनी हुई है और लगातार गंभीर रूप ले रही है, लेकिन उदयपुर नगर निगम इस पर ध्यान देने को तैयार नहीं है। नागरिकों और हितधारकों द्वारा लगातार शिकायतें किए जाने के बावजूद अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है।
गणगौर घाट, फतेहसागर, स्वरूप सागर, सिटी पैलेस रोड और पिछोला झील जैसे महत्वपूर्ण पर्यटन स्थलों पर आवारा कुत्तों की बढ़ती संख्या अब पर्यटकों के अनुभव को भी प्रभावित कर रही है। कई पर्यटक, खासकर जो पहली बार शहर में आते हैं, इन आक्रामक कुत्तों के हमलों से भयभीत हो जाते हैं। इससे न केवल उदयपुर की छवि धूमिल हो रही है, बल्कि प्रशासन की उदासीनता पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं।
पर्यटन व समाज से जुड़े प्रमुख लोगों ने व्यक्त की चिंता
होटल एसोसिएशन उदयपुर उपाध्यक्ष एवं पर्यटन विशेषज्ञ यशवर्धन राणावत ने कहा की उदयपुर एक पर्यटन आधारित शहर है, और यहाँ की प्राथमिकता पर्यटकों एवं नागरिकों की सुरक्षा होनी चाहिए। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि इतनी घटनाओं के बावजूद नगर निगम इस समस्या का समाधान करने में पूरी तरह विफल रहा है। हम सभी पशु कल्याण का सम्मान करते हैं, लेकिन यह मानव सुरक्षा की कीमत पर नहीं हो सकता। पर्यटक यहाँ शांति और विरासत का अनुभव लेने आते हैं, न कि आवारा कुत्तों द्वारा दौड़ाए जाने या रातभर उनकी भौंकने और रोने की आवाज़ सुनने के लिए। प्रशासन को तत्काल प्रभाव से प्रभावी नसबंदी और पुनर्वास कार्यक्रम लागू करना चाहिए ताकि यह संकट टल सके।
एंटी करप्शन एंड क्राइम कंट्रोल कमेटी के मीडिया सेल के राष्ट्रीय अध्यक्ष पवन जैन पदमावत ने बताया की ‘यह नगर निगम की लापरवाही और कुप्रबंधन का सीधा उदाहरण है। उदयपुर अब ऐसा शहर बनता जा रहा है जहां बुनियादी नागरिक समस्याओं की कोई जवाबदेही नहीं है। जब बच्चे, बुजुर्ग और पर्यटक लगातार कुत्तों के काटने का शिकार हो रहे हैं, तो इसे अनदेखा करना अपराध के समान है। नगर निगम को अपनी नींद से जागना चाहिए और शहरव्यापी नसबंदी, टीकाकरण और आक्रामक कुत्तों के पुनर्वास की दिशा में ठोस कार्रवाई करनी चाहिए। यह समस्या पहले ही कई दुर्घटनाओं और गंभीर चोटों का कारण बन चुकी है, और यदि तत्काल समाधान नहीं किया गया तो परिणाम और भी घातक हो सकते हैं।
उदयपुर गाइड एसोसिएशन के अध्यक्ष दिग्विजय राणावत ने कहा कि हम प्रतिदिन सैकड़ों पर्यटकों का मार्गदर्शन करते हैं, लेकिन अब उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करना मुश्किल होता जा रहा है। ऐतिहासिक स्थलों पर आवारा कुत्तों की बढ़ती संख्या एक गंभीर समस्या है। कई पर्यटक कुछ क्षेत्रों में जाने से कतराने लगे हैं, और कुछ ने तो गणगौर घाट और स्वरूप सागर जैसी जगहों पर पैदल जाने से माना कर दिया क्योंकि वहाँ कुत्तों का खतरा अधिक है। यदि हमें पर्यटन उद्योग को बचाना है, तो प्रशासन को तुरंत इस समस्या का समाधान करना होगा।
पर्यटन हितधारक प्रद्युम्न सिंह चौहान ने गहरी चिंता जताते हुए कहा की उदयपुर को एक विश्व स्तरीय पर्यटन स्थल के रूप में स्थापित करने की हमारी मेहनत इस समस्या के कारण दांव पर लगी हुई है। कोई भी पर्यटक आवारा कुत्तों के हमलों का शिकार होने के लिए यहाँ नहीं आता। इसके समाधान के लिए एक विशेष कार्यबल (टास्क फोर्स) का गठन किया जाना चाहिए जो इस समस्या को नियंत्रित करने के लिए तेजी से कदम उठाए। नगर निगम को गैर-सरकारी संगठनों (एनजीओज) और पशु कल्याण संस्थानों के साथ मिलकर संगठित नसबंदी और पुनर्वास कार्यक्रम लागू करना चाहिए।
अब कार्रवाई करना अनिवार्य
आवारा कुत्तों की समस्या केवल एक सामान्य नगर निगम का मुद्दा नहीं है, बल्कि यह पर्यटन, जनसुरक्षा और उदयपुर की प्रतिष्ठा के लिए एक गंभीर खतरा बन चुकी है। नगर निगम को चाहिए कि वह जल्द से जल्द नसबंदी, टीकाकरण और पुनर्वास अभियान शुरू करे और इसमें विशेषज्ञों की मदद ले। साथ ही, कुत्तों के काटने से जुड़े मामलों के लिए एक आपातकालीन हेल्पलाइन भी शुरू करनी चाहिए ताकि त्वरित सहायता मिल सके।उदयपुर के नागरिकों और पर्यटन हितधारकों की मांग साफ है—अब बहुत हो चुका! प्रशासन को अविलंब इस समस्या पर ध्यान देना होगा, वरना उदयपुर को इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ेगी। सवाल यह है कि क्या जिम्मेदार अधिकारी जागेंगे, या शहर को उनकी निष्क्रियता का खामियाजा भुगतना पड़ेगा?