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नवां दिन : सम्यक तप भवसागर से पार उतरने के लिए नौका के समान है – आचार्य पदमभुषण रत्न सुरिश्वर

नवां दिन : सम्यक तप भवसागर से पार उतरने के लिए नौका के समान है – आचार्य पदमभुषण रत्न सुरिश्वर

आयड़ जैन तीर्थ में अनवरत बह रही धर्म ज्ञान की गंगा

नवपद ओली के नवें दिन हुए विविध आयोजन

उदयपुर । श्री जैन श्वेताम्बर महासभा के तत्वावधान में तपागच्छ की उद्गम स्थली आयड़ तीर्थ स्थित आत्मवल्लभ सभागर में आचार्य पदमभुषण रत्न सुरिश्वर व प्रन्यास ऋषभ रत्न विजय, साध्वी कीर्तिरेखा श्रीजी संघ की निश्रा में मंगलवार को नवनद ओली के नवेंं दिन विशेष पूजा-अर्चना के साथ अनुष्ठान हुए। महासभा के महामंत्री कुलदीप नाहर ने बताया कि आयड़ तीर्थ के आत्म वल्लभ सभागार में सुबह 7 बजे आरती, मंगल दीपक, सुबह सर्व औषधी से महाअभिषेक एवं अष्ट प्रकार की पूजा-अर्चना की गई। स्नात्र पूजा के पश्चात विविध प्रकार की औषधियों से प्रतिमा का अभिषेक किया गया। धर्मसभा मेें आचार्य ने नवपद की आराधना के अंतिम एवं नवें दिन सम्यक तप की आराधना की। साध्वियों ने सम्यक तप के विषय में बताया कि इस की आराधना से संसार से मुक्ति पाने की राह आसान हो जाती है। तप की आराधना से कर्म-निर्जरा का महत्वपूर्ण कारण है। तप से कर्मों की निर्जरा होती है। तप यानी इन्द्रिय रूपी चंचल घोड़े को वश करने वाली लगाम मदोन्मत्त मन रूपी हाथी को वश करने वाला अंकुश। कर्मरूपी जंजीर को तोड़कर मुक्ति रूपी मंजिल पर चढ़ाने वाला सोपान। जैन आगम में तप के दो प्रकार बताये गये हैं। बाध्य रूप, अभ्यन्तर रूपों बाह्य रूप यानि जिस तप में साधना का सम्बन्ध शरीर से अधिक प्रतीत होता है उसे बाहय तप कहते हैं। जैसे पच्चक्रवाण उपवास आदि । अणसण, उणोदरी, वृत्ति संक्षेप, रसत्याग, कायक्लेश और संकीणता ये छ: प्रकार के बाह्य तप हैं। अभ्यन्तररूप यानि जो लप लोगों को देखने में नहीं आता वह अभ्यन्तर तप है। जैसे प्रायश्चित, विनय, वैयावच्च, सज्झास, ध्यान और उपसर्गये छ: प्रकार के अभ्यन्तर तप हैं। इस प्रकार तप के बारह प्रकार हैं। इन्द्रिय और मन को वश में करना तप है इससे अन्तर्मुखी बनता है जिससे आत्म दर्शन सुलभ बन जाता है। तप जीवन का प्राण तत्त्व है। तपसे मनुष्य सर्वसिद्धियों को प्राप्त कर सकता है। हमारे तीर्थकर परमात्मा भी अपने पूर्व के तीसरे भव में बीस स्थानक तप की आराधना के द्वारा ही तीर्थकर पद को निकासित करते हैं। चक्रवर्ती भी छ: खंड के राज्य पर अद्रुम तप के प्रभाव से ही विजय प्राप्त करते हैं। जैन शासन में बहुत ही महत्व बताया है क्योंकि तप धर्म की आराधना मनुष्य गति में ही होती है। इस अवसर महासभा महामंत्री कुलदीप नाहर, महासभा अध्यक्ष तेजसिंह बोल्या, चतर सिंह पामेचा, सतीस कच्छारा, श्याम हरकावत, भोपाल सिंह दलाल, श्रेयांश पोरवाल, प्रवीण हुमड़, भोपाल सिंह नाहर, अशोक जैन, प्रकाश नागोरी आदि मौजूद रहे।

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