कॉर्पोरेट कल्चर: नींद पर मंडराता खतरा — कल्पेश परब
तेजी से भागते शहरों में कॉर्पोरेट कल्चर सिर्फ काम करने का तरीका नहीं रहा, बल्कि यह अब जीवनशैली का अहम हिस्सा बन चुका है। कड़ी प्रतिस्पर्धा, लगातार डेडलाइन्स, 24×7 ईमेल्स और स्क्रीनटाइम के बढ़ते दबाव ने मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर गंभीर असर डाला है। खासकर, नींद पर इसका गहरा प्रभाव पड़ा है। आज की इस दौड़ में ऐसा लगता है मानो हमारी नींद ही हमसे छिन गई है।
कॉर्पोरेट सेक्टर में काम करने वाले युवा और मध्यम आयु वर्ग के लोग नींद की समस्या से सबसे ज्यादा जूझ रहे हैं। 2023 की एक रिपोर्ट के अनुसार, शहर की मानसिक स्वास्थ्य हेल्पलाइन पर आने वाले 40% कॉल्स नींद से जुड़ी समस्याओं को लेकर थे। अनियमित वर्किंग ऑवर्स, बार-बार बदलने वाली शिफ्ट्स और ‘वर्क फ्रॉम होम’ कल्चर की वजह से लोग हमेशा ‘ऑनलाइन मोड’ में रहते हैं। दिमाग हर वक्त एक्टिव रहता है, काम का तनाव देर रात तक खिंचता है, स्क्रीन के सामने बिताया गया समय बढ़ता है और नींद का चक्र पूरी तरह बिगड़ जाता है। कई लोग देर रात तक ईमेल्स चेक करते रहते हैं और जब काम नहीं होता, तो इंस्टाग्राम या फेसबुक पर रील्स देखते रहते हैं। कुछ लोग तो काम के विचारों के चलते रातभर सो ही नहीं पाते।
शहरों में बढ़ता ट्रैफिक और लंबा रोजाना का सफर इस समस्या को और बढ़ा देता है। थका हुआ दिमाग, नींद की कमी और बढ़ा हुआ तनाव छोटी-छोटी बातों पर झगड़े और बहस का कारण बन जाते हैं। चाहे ट्रेन में किसी के धक्के से झगड़ा हो या सड़क पर छोटी-छोटी बातों पर बहस, इन सबकी जड़ नींद की कमी में छिपी होती है। इसके अलावा, मोबाइल स्क्रीन की लत ने दिमाग को पूरी तरह से आराम करने से वंचित कर दिया है।
नींद की कमी के नतीजे सिर्फ मानसिक नहीं, बल्कि शारीरिक भी हैं। हाई ब्लड प्रेशर, डायबिटीज और हृदय रोग जैसी समस्याएं तेजी से बढ़ रही हैं। इसके साथ ही, व्यक्तिगत जीवन पर भी असर पड़ रहा है। परिवार के लिए समय निकालना मुश्किल होता जा रहा है, रिश्तों में तनाव बढ़ रहा है और खुद के लिए समय निकालना तो मानो असंभव हो गया है।
आज के दौर में कॉर्पोरेट जीवनशैली से बचना संभव नहीं है, लेकिन इसे संतुलित करना जरूरी है। नींद, स्वास्थ्य और मानसिक शांति के लिए समय निकालना बेहद आवश्यक है, क्योंकि यही वे तीन स्तंभ हैं जिन पर एक सफल करियर और खुशहाल जीवन टिका होता है।
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