गुलाबी सुंडी को नियंत्रित करने में मददगार
बांसवाड़ा । गुलाबी सुंडी को नियंत्रित करने में मददगार मेटिंग नियत्रंण तकनीक शनिवार कृषि अनुसंधान केन्द्र, बोरवट फार्म, बासंवाड़ा पर शनिवार को आईसीएआर-केन्द्रीय कपास अनुसंधान संस्थान नागपुर एवं भारतीय कपास निगम लिमिटेड के सहयोग से चल रहे एक्सटेंशन पाइलेट प्रोजेक्ट के तहत कपास की गुलाबी सुंडी को नियंत्रित करने में मददगार संभोग व्यवधान तकनीक के बारे में एक दिवसीय प्रशिक्षण का आयोजन किया गया। जिसमे 44 कृषकों ने इस प्रशिक्षण में भाग लिया। इस प्रोजेक्ट से जुड़े कीट वैज्ञानिक डॉ. आर. के. कल्याण ने इस परियोजना के बारे में बताया। कपास की गुलाबी सुंडी भारत के सभी कपास उत्पादक राज्यों मे एक प्रमुख कीट बनकर उभरा है। इसका संभोग व्यवधान तकनीक से प्रबंधन कैसे करे। ये कैसे काम करती है। इसे खेतों में लगाने की विधि और इस विधि के लाभों बारे में बताया। यह वह तकनीक हे जिसमें नर कीड़ो को मादा की तलाश करने और संभोग करने से रोकने के लिए सेक्स फेरोमोन को काम में लिया जाता है। सेक्स फैरोमोन मादा कीड़े द्वारा छोड़ा गया वह रसायन है जो दुर से नर को संभोग के लिए आकर्षित करती है। गुलाबी सुंडी की मादा गोसीप्लोर नाम का फेरोमोन छोडती है जिसे कृत्रिम रूप से तैयार करके प्लास्टिक की पाइप (20 सेमी) में एक महीन त्तार पर लगा कर तैयार करते है जिसे पीबी रोप या पीबी नोट के नाम से जाना जाता है। जिसको खेतों में खड़ी फसल में लगा दिया जाता है। जो प्राकृतिक तापमान पर फैलती है और छोटे-छोटे महीन छिद्रदो से फेरोमोन उत्सर्जित होकर हवा में फैलते है और नर पतंगों को भ्रमित करते है और उन्हें वास्तविक मादा पंतगों तक पहुंचने से रोकता है। नर कीड़ा गंध के कारण अस्तित्वहीन मादा की तलाश में रहता है और इसी क्रम में मर जाता है। यदि मादा पतंगे संभोग नहीं करती है. तो वे निषेचित अंडे नहीं दे सकती है और, यदि उनके संभोग में देरी होती है, तो वे अपने जीवनकाल में कम निषेचित अंडे देंगी। परिणामस्वरूप, इनकी जनसंख्या में कमी होगी और फसल को नुकसान पहुंचाने के लिए कम लार्वा मौजूद होगें। इसे 40 दिन पुराने पौधे के तने पर राखी की तरह बांधा जाता है। ऐसी लगभग 150-160 रस्सियों एक एकड़ में काफी है। खेत की सीमा के साथ और अंदर 25 वर्ग मीटर (5×5 मी) के अंतराल पर लगाई जाती है। इसको लगाने के बाद फेरोमोन की गंध 90-100 दिनों तक बनी रहती है। इस कार्यक्रम में प्रियांश मेहता, अशोक मावी एवं डॉ. पप्पु लाल दलाल ने कपास की खेती के बारे में चर्चा की।