महिला शिक्षा के प्रेरणा पुंज थे महात्मा ज्योतिबा फुले — प्रो. (डॉ.) मनोज कुमार बहरवाल
“विद्या बिना मति गई, मति बिना नीति गई
नीति बिना गति गई, गति बिना वित्त गया
वित्त बिना शूद्र गए, इतने अनर्थ एक अविद्या ने किए…”
आज 11 अप्रैल है— महात्मा ज्योतिबा फुले की जयंती। हर साल यह दिन मेरे लिए केवल एक तिथि नहीं, बल्कि एक प्रेरणा का दिन होता है। जब-जब महिला शिक्षा की बात आती है, तब-तब फुले जी का संघर्ष स्मरण हो आता है।
फुले जी का जन्म 1827 में पुणे में एक माली परिवार में हुआ था। कठिन परिस्थितियों में भी उन्होंने शिक्षा की ज्योति जलाए रखी। उनकी पत्नी सावित्रीबाई फुले के साथ मिलकर उन्होंने 1848 में भारत की पहली बालिका पाठशाला की स्थापना की—एक ऐतिहासिक कदम, जब स्त्रियों को शिक्षा देना पाप माना जाता था।
उस समय समाज इतना संकीर्ण था कि अध्यापिका तक नहीं मिली, तो उन्होंने स्वयं पढ़ाया और सावित्रीबाई को प्रशिक्षित कर अध्यापन में लगाया। विरोध, बहिष्कार, यहाँ तक कि घर से निकाले जाने का भी उन्होंने सामना किया, परन्तु कभी हिम्मत नहीं हारी।
आज जब मैं अपने कॉलेज में छात्राओं को आत्मविश्वास से भरपूर देखता हूँ, तो मन में गर्व होता है कि हम फुले की परंपरा के वाहक हैं। उन्होंने सिर्फ शिक्षा ही नहीं, बल्कि विधवा कल्याण, किसान अधिकार और ब्राह्मणवादी पाखंड के विरुद्ध भी संघर्ष किया।
1873 में उन्होंने “सत्यशोधक समाज” की स्थापना की, जिसका उद्देश्य था—समानता, न्याय और शिक्षा का प्रचार। उन्होंने ‘गुलामगिरी’, ‘किसान का कोड़ा’ जैसी पुस्तकों के माध्यम से समाज की नींव हिलाने वाले मुद्दों पर लिखा।
1883 में ब्रिटिश सरकार ने उन्हें “स्त्री शिक्षण के आद्यजनक” कहकर सम्मानित किया और 1888 में उन्हें “महात्मा” की उपाधि मिली।
आज के संदर्भ में देखें तो महिला नेतृत्व की जो लौ हमने राजनीति, विज्ञान, शिक्षा और उद्यमिता में प्रज्ज्वलित होते देखी है, उसकी चिंगारी महात्मा फुले के प्रयासों से ही प्रज्वलित हुई थी।
हमारे वर्तमान में, जहाँ बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ जैसे अभियान चल रहे हैं, वहाँ यह याद रखना आवश्यक है कि इस सोच की नींव बहुत पहले ही रखी जा चुकी थी।
आज फुले जी की जयंती पर मैं, एक शिक्षक के रूप में, यह संकल्प लेता हूँ कि उनके विचारों को नई पीढ़ी तक पहुँचाऊँगा और शिक्षा के क्षेत्र में महिलाओं को और सशक्त करने का निरंतर प्रयास करूँगा।
महात्मा फुले की जयंती पर आप सभी को मंगलकामनाएं। आइए, हम सब मिलकर उनके दिखाए मार्ग पर चलें और समाज में समानता और शिक्षा का उजियारा फैलाएं।
प्रो. (डॉ.) मनोज कुमार बहरवाल,
प्राचार्य, सम्राट पृथ्वीराज चौहान राजकीय महाविद्यालय, अजमेर।
महिला शिक्षा के प्रेरणा पुंज थे महात्मा ज्योतिबा फुले — प्रो. (डॉ.) मनोज कुमार बहरवाल
Published : April 11, 2025 8:23 PM IST
Updated : April 11, 2025 8:23 PM IST