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यात्री कर: पर्यटन व होटल उद्योग के विकास को रोकने वाला निर्णय

Reported By : Padmavat Media
Published : May 3, 2025 4:43 PM IST
लेखक: यशवर्धन राणावत, उपाध्यक्ष, होटल एसोसिएशन उदयपुर

यात्री कर: पर्यटन व होटल उद्योग के विकास को रोकने वाला निर्णय

लेखक: यशवर्धन राणावत, उपाध्यक्ष, होटल एसोसिएशन उदयपुर

उदयपुर मंथन – एक संवाद

नगर निगम, उदयपुर द्वारा हाल ही में तैयार खाके के अनुसार अब ₹3000 से अधिक किराया देने वाले पर्यटकों पर ‘यात्री कर’ वसूला जाएगा। जल्द ही नगरनिगम द्वारा होटल व्यवसायियों को अधिसूचना जारी करने की तैयारी है। यह कर ₹10,000 से ऊपर के किराये पर ₹500, ₹5000 से ₹10,000 के बीच ₹300, तथा ₹3000 से ₹5000 के बीच ₹200 तक निर्धारित किया गया है। राज्य सरकार द्वारा इसे गजट अधिसूचना के माध्यम से स्वीकृति भी दे दी गई है। शहर के एक प्रमुख अख़बार ने इस मुद्दे को फिर से उठाया जिससे पर्यटन व्यवसायियों में जबरदस्त रोष है । 

यह निर्णय न केवल होटल व्यवसायियों के लिए अत्यंत आघातजनक है, बल्कि यह समूचे पर्यटन उद्योग के लिए एक नकारात्मक संदेश है। यह मुद्दा बार बार क्यों उठता है, यह भी हास्यास्पद है । 

होटल व्यवसायियों की चिंता: यह निर्णय क्यों अनुचित है ?

 1. एकतरफा निर्णय, बिना विचार-विमर्श के:

न तो होटल एसोसिएशन्स से सलाह ली गई, न किसी प्रतिनिधि संस्था से संवाद हुआ। यह पूरी प्रक्रिया अलोकतांत्रिक और भ्रामक है। इसमें पर्यटन हितधारकों से कोई चर्चा भी नहीं की गई । 

 2. उदयपुर को ही क्यों निशाना बनाया गया?

जब पूरे राजस्थान और भारत में किसी भी शहर में ऐसा कर लागू नहीं है, तो सिर्फ उदयपुर को ही क्यों इस ‘प्रयोगशाला’ में बदला जा रहा है ? क्या उदयपुर को उसकी पर्यटन सफलता की सजा दी जा रही है ? या शहर से ज़्यादा राजस्व वसूलने की सज़ा ?

 3. लाइसेंस राज और लालफीताशाही को पुनर्जीवित करने की कोशिश:

होटल संचालकों को अब ‘यात्री कर रजिस्टर’ बनाए रखने होंगे, भुगतान व रसीदें देनी होंगी, और निगम अधिकारियों को हर विवरण समय पर देना होगा। यह सब प्रशासनिक बोझ है जो छोटे व मध्यम होटल्स के साथ बड़े होटल्स के लिए भी विशेष रूप से भारी पड़ेगा।

 4. ईज़ ऑफ डूइंग बिजनेस की बात कहां गई ? 

सरकार एक ओर ‘प्रगतिशील’ और ‘निवेश-अनुकूल’ नीति का दावा करती है, वहीं दूसरी ओर ऐसे निर्णय लेकर उद्योग जगत को अचंभित कर रही है। क्या नगरनिगम द्वारा राज्य सरकार को अंधेरे में रखा जा रहा है ? सरकार तो जानता के हित की है, फिर निर्णय अहित का क्यों ? 

 5. पर्यटकों पर प्रत्यक्ष प्रभाव:

₹3000 से अधिक किराया देने वाला पर्यटक, जो पहले ही टैक्स सहित मूल्य चुका चुका है, अब अतिरिक्त शुल्क के बोझ तले दबेगा। इससे उदयपुर की छवि ‘महंगे पर्यटन स्थल’ की बन सकती है और इससे पर्यटकों की संख्या में गिरावट की आशंका है।

    1. नगरनिगम की दिशा: 

जहाँ एक ओर नगर निगम स्वयं अपनी मूलभूत जिम्मेदारियों — जैसे स्वच्छता, झील और जलाशयों का रख-रखाव, पहाड़ियों का संरक्षण, निर्माण नियंत्रण और नागरिक सुविधाओं — के सफल क्रियान्वयन, निगरानी और गुणवत्ता नियंत्रण में बुरी तरह असफल रहा है, वहीं दूसरी ओर यह संस्था होटल उद्योग जैसे संगठित और उच्च करदाता क्षेत्र के लिए ऐसे भारी-भरकम और अव्यवहारिक निर्णय लेने की योग्यता कैसे अर्जित कर बैठी? जिस उद्योग ने भवन निर्माण से लेकर संचालन तक हर चरण पर जीएसटी, इनकम टैक्स, परमिशन फीस और लाइसेंस शुल्क के रूप में राज्य को सबसे अधिक योगदान दिया है, उसी को निशाना बनाकर मनमाने निर्णय थोपना न्याय नहीं, शोषण है। यह न केवल प्रशासनिक विवेकहीनता का उदाहरण है, बल्कि पर्यटन आधारित अर्थव्यवस्था की रीढ़ पर सीधा प्रहार है।

नगर निगम की भूमिका पर सवाल

क्या यह वही निगम है जिसे शहर की सफाई, जल निकासी, झीलों और जलाशयों की सफाई, कचरा और सीवरेज व्यवस्था, यातायात व्यवस्था और सड़कों की दशा सुधारनी थी ? जबकि शहर की मूलभूत समस्याओं का समाधान वर्षों से लंबित है, निगम अब होटल व्यवसायियों को ‘अतिरिक्त’ राजस्व स्रोत बना रहा है। यह निर्णय समझदारी और दूरदर्शिता से कोसों दूर प्रतीत होता है।

चुनाव आने वाले हैं, होटल व्यवसायियों को अब निर्णय लेना होगा

अब समय आ गया है जब होटल उद्योग एकजुट होकर यह तय करे कि भविष्य में नगर निगम में किसे चुनना है। जो प्रतिनिधि उद्यमियों की समस्याएं न समझें, वे प्रतिनिधि नहीं, सिर्फ प्रशासक हैं – और इस शहर को प्रशासकों से नहीं, भागीदारों की आवश्यकता है।

निष्कर्ष: निर्णय को तुरंत वापस लिया जाए

यह गजट अधिसूचना न केवल होटल व्यवसाय के लिए बल्कि पूरे पर्यटन तंत्र के लिए घातक है। हम सरकार और नगर निगम से मांग करते हैं कि इस निर्णय को तुरंत प्रभाव से वापस लिया जाए। अन्यथा, होटल उद्योग को अपनी रणनीति बदलनी होगी और लोकतांत्रिक माध्यमों से अपने हितों की रक्षा करनी होगी।

नगर निगम की दूरदर्शिता की कमी और तात्कालिक सोच का सबसे बड़ा उदाहरण यह है कि होटल उद्योग के लिए प्रस्तावित 10 वर्षीय लाइसेंस की व्यवस्था आज तक अमल में नहीं लाई गई है। यह मांग कोई नई नहीं, बल्कि वर्षों से चली आ रही एक अत्यंत व्यावहारिक और न्यायोचित मांग है, जिसे स्वयं राज्य की उपमुख्यमंत्री द्वारा भी स्वीकार किया गया और निगम को स्पष्ट निर्देश दिए गए। इसके बावजूद नगर निगम ने अब तक इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया। यह स्थिति गंभीर प्रश्न खड़ा करती है—क्या वास्तव में नगर निगम को पर्यटन और होटल उद्योग की बारीक समझ है ? या फिर यह संस्था अपनी मनमर्जी, मनमाने निर्णयों और अहंकारी रवैये के आधार पर उदयपुर जैसे वैश्विक पर्यटन केंद्र की दिशा तय करने का दुस्साहस कर रही है ? यह न सिर्फ दुर्भाग्यपूर्ण है, बल्कि पर्यटन और आर्थिक विकास की संभावनाओं पर सीधा प्रहार है।

उदयपुर के समस्त पर्यटन हितधारकों को समय रहते जागना होगा और अपने पर्यटन व्यवसाय और पर्यटकों हेतु न्यायोचित कदम उठाना होगा । 

“पर्यटन और पर्यटक का सम्मान करो, न कि उसका दोहन।” क्या यही सनातन संस्कृति में पर्यटन को चरितार्थ करता ‘पधारो म्हारे देश’ है ?

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