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प्री-वेडिंग शूट: आधुनिकता की आड़ में एक अनावश्यक बोझ – डॉ अंजू बेनीवाल

Reported By : Padmavat Media
Published : March 17, 2025 12:32 PM IST
Updated : March 17, 2025 12:34 PM IST

प्री-वेडिंग शूट: आधुनिकता की आड़ में एक अनावश्यक बोझ – डॉ अंजू बेनीवाल

भारतीय शादियों की धूमधाम और उत्सवधर्मिता विश्वभर में प्रसिद्ध है। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में एक नया चलन, जिसे “प्री-वेडिंग शूट” कहा जाता है, तेजी से भारतीय शादियों का हिस्सा बन गया है। आधुनिकता और सोशल मीडिया के प्रभाव में, यह चलन जहां एक तरफ युवाओं को आकर्षित कर रहा है, वहीं दूसरी ओर यह शादी की तैयारियों में एक अतिरिक्त आर्थिक और मानसिक बोझ भी बनता जा रहा है। प्री-वेडिंग शूट का मुख्य उद्देश्य दूल्हा-दुल्हन के प्रेम और साथ के खास पलों को कैमरे में कैद करना बताया जाता है, लेकिन क्या यह वास्तव में आवश्यक है? क्या यह एक दिखावे का नया रूप नहीं बन गया है? इस तरह के शूट्स का चलन खासतौर पर सोशल मीडिया प्लेटफार्मों जैसे इंस्टाग्राम और फेसबुक के लिए सामग्री बनाने का माध्यम बन गया है। इसमें भावनाओं से अधिक ध्यान आकर्षण और लाइक्स पर केंद्रित होता है, जो कि सामाजिक दबाव का नया रूप है।

प्री-वेडिंग शूट्स का खर्च तेजी से बढ़ता जा रहा है। एक औसत प्री-वेडिंग शूट का खर्च 20,000 रुपये से लेकर 1 लाख रुपये तक हो सकता है, जो कई मध्यमवर्गीय परिवारों के लिए एक अतिरिक्त आर्थिक बोझ है। अगर शूट किसी विदेशी लोकेशन पर हो या थीमेटिक हो, तो खर्च लाखों में पहुंच सकता है। भारतीय फोटोग्राफी एसोसिएशन के अनुसार, पिछले 5 वर्षों में इस उद्योग का वार्षिक विकास दर 30% रही है, जिसमें प्री-वेडिंग शूट्स का बड़ा योगदान है। लेकिन यह विकास किस कीमत पर हो रहा है? ऐसे खर्च से शादी का बजट और बढ़ जाता है, जिससे आर्थिक रूप से संघर्ष कर रहे परिवारों पर दबाव पड़ता है।

प्री-वेडिंग शूट्स की लोकप्रियता ने समाज में एक प्रकार का दबाव उत्पन्न कर दिया है। विशेषकर छोटे शहरों और ग्रामीण इलाकों में जहां लोग आधुनिकता और परंपरा के बीच फंसे हुए हैं, वहां इसे सामाजिक प्रतिष्ठा का मापदंड माना जाने लगा है। जो लोग इसे वहन नहीं कर सकते, वे खुद को पिछड़ा महसूस करते हैं। इससे समाज में असमानता और बढ़ रही है, क्योंकि आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए यह एक ‘अवश्य’ हिस्सा बनता जा रहा है। भारतीय शादियों में रिश्तों और परंपराओं का एक महत्वपूर्ण स्थान होता है। लेकिन प्री-वेडिंग शूट्स के बढ़ते चलन ने विवाह की पारंपरिकता को कहीं न कहीं प्रभावित किया है। अब शादियों में भावनात्मक और सांस्कृतिक महत्व की तुलना में दिखावे और भव्यता पर अधिक जोर दिया जा रहा है। कई बार तो प्री वेडिंग शूट के दौरान लिए गए वीडियो और फोटोस जब शादी के अवसर पर लोगों के सामने सार्वजनिक रूप से दिखाये जाते हैं तो बुजुर्ग अपने आप को बहुत असहज महसूस करने लगते है। व्यक्तिगत भावनाओं का सार्वजनिक प्रदर्शन हमारी संस्कृति का हिस्सा नहीं है क्योंकि हम आज भी कहीं न कहीं अपनी संस्कृति से जुड़े हुए है और प्रेम के सार्वजनिक प्रदर्शन की कुछ सीमाएं हमने बना रखी लेकिन जब बात विवाह पूर्व इस तरह के फोटोशूट्स की बात आती है तो वहां नाराजगी जाहिर बात है। कुछ जोड़े तो सोशल मीडिया पर फोटो डालने की होड़ में आतिउत्साहित होकर इस तरह का फोटोशूट करवाते है सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित करना सही नहीं होता।

वर्तमान में प्री-वेडिंग शूट्स का चलन युवाओं में बढ़ते व्यक्तिवाद (Individualism) और समाज के प्रति बदलते नजरिए का प्रतीक है। एक अध्ययन में यह सामने आया है कि 70% से अधिक युवा प्री-वेडिंग शूट्स को अपनी पहचान और रिश्ते को दर्शाने का एक आधुनिक तरीका मानते हैं। लेकिन क्या यह पहचान वास्तव में स्थायी है, या यह केवल एक अस्थायी दिखावा है? यह विचारणीय पहलू है।

इसके साथ ही महंगे और भव्य लोकेशंस पर होने वाले प्री-वेडिंग शूट्स पर्यावरणीय रूप से भी हानिकारक हो सकते हैं। पहाड़ी इलाकों, समुद्र किनारे और ऐतिहासिक स्थलों पर शूट्स के दौरान कई बार प्राकृतिक संसाधनों और विरासत स्थलों को नुकसान पहुंचता है। यह पर्यावरण संरक्षण के खिलाफ है और समाज में एक गलत संदेश भेजता है। कुछ लोग मंदिरों आदि का प्रयोग भी इस हेतु करने लगे है जो हमारी संस्कृति के खिलाफ है। विवाह दो लोगों के नए जीवन की शुरुआत का एक बहुत खूबसूरत पल है इसे शालीनता व पवित्र भावनाओ के साथ सहेजना चाहिए न की आधुनिकता या प्रतिस्पर्धा के रूप में लेना चाहिए। वर्तमान में जहां एक और हम लोग आधुनिक बनने की होड़ में विवाह जैसे पवित्र संस्कार मैं प्रेम जैसी पवित्र भावनाओं का सार्वजनिक फूहड़ प्रदर्शन करने में लगे हुए हैं वहीं दूसरी ओर पश्चिमी देशों में साइलेंट शादी का ट्रेंड बढ़ता जा रहा है जहां कपल्स शांत जगह पर अपने परिवारजनों व कुछ खास दोस्तों के साथ फोटोशूट के बिना कम खर्च में बिना किसी तनाव के विवाह करने को प्राथमिकता दे रहे हैं उनका ध्यान अब गुणवत्तापूर्ण समय एवं संबंधों पर अधिक है। वहां अब लोग चकाचौंध वाली शादी की बजाय शांत वातावरण में सामान्य शादी को महत्व दे रहे है। लेकिन भारत में बढ़ती दिखावे के प्रवृति ने विवाह जैसे सामाजिक उत्सव को सार्वजनिक उत्सव बना दिया है जिसका उदाहरण प्री वेडिंग शूट है।

भारत में कुछ समुदायों और जातियों में प्री-वेडिंग शूट पर प्रतिबंध लगाए गए हैं। उदाहरण के लिए, राजस्थान के कुछ हिस्सों में राजपूत समुदाय के कुछ गुटों ने प्री-वेडिंग शूट्स पर प्रतिबंध लगाया है। यह प्रतिबंध इस आधार पर लगाया गया है कि प्री-वेडिंग शूट को पारंपरिक मूल्यों और संस्कारों के खिलाफ माना जाता है। उनका मानना है कि यह पश्चिमी संस्कृति का प्रभाव है, जो भारतीय विवाह की पवित्रता और सांस्कृतिक परंपराओं को नुकसान पहुंचा सकता है। इसके अलावा, गुर्जर और कुछ अन्य ग्रामीण समुदायों में भी प्री-वेडिंग शूट्स को लेकर असहमति व्यक्त की गई है। कई जगह यह माना जाता है कि विवाह से पहले इस तरह की सार्वजनिकता उनके सांस्कृतिक और धार्मिक आदर्शों के खिलाफ है, और यह उनकी पारंपरिक शालीनता के सिद्धांतों का उल्लंघन करता है। यह प्रतिबंध अक्सर उन समुदायों में देखा जाता है, जहां पारंपरिक रीति-रिवाजों का पालन सख्ती से किया जाता है, और आधुनिकता को अपनाने में समाज के एक वर्ग द्वारा विरोध किया जाता है।

प्री-वेडिंग शूट्स का बढ़ता चलन समाज में आधुनिकता के नाम पर एक अनावश्यक आर्थिक और सामाजिक दबाव बना रहा है। यह जहां कुछ लोगों के लिए एक खूबसूरत अनुभव हो सकता है, वहीं बहुत से लोगों के लिए यह एक अनावश्यक खर्च और तनाव का कारण बन गया है। हमें इस चलन पर विचार करने की आवश्यकता है कि क्या वास्तव में यह हमारी सामाजिक व्यवस्था और पारंपरिक मूल्यों के अनुकूल है या यह केवल दिखावे की एक नई परंपरा बन गई है। यह लेखक के स्वयं के विचार हैं।

डॉ अंजू बेनीवाल
समाजशास्त्री
राजकीय मीरा कन्या महाविद्यालय, उदयपुर

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9 comments

Satya 18/03/2025 at 7:25 PM

समाज को एक नई दिशा देने वाली सोच कि हम क्या करें हमको क्या करना चाहिए

Vandna 18/03/2025 at 8:04 PM

Agree

Jaswant singh 18/03/2025 at 8:08 PM

I am agree with you.

Anonymous 18/03/2025 at 8:17 PM

अच्छा कदम है

Patel 19/03/2025 at 8:51 AM

Pre wedding shoot
इसे में बहुत गलत मानता हु
सिर्फ सामाजिक प्रतिष्ठा और दिखावा कुछ समय बाद पछतावे और आर्थिक बोझ में बदल जाता है

Indira, counselor and psychologist 19/03/2025 at 10:53 AM

Beautiful write up. It’s time for the youth to come forward to keep the glory of rich culture. Elders are agreeing totally spending their money for these new trends in order to compensate for all the lacking (they feel) in upbringing of their children. It is they who want to show off their status and forwardness by allowing all this.

Anonymous 19/03/2025 at 11:44 AM

Sahi kaha mam
Apne
Extra money Kharche ho jate hai

Anonymous 19/03/2025 at 2:22 PM

Very true

M R chaudhary 20/03/2025 at 12:13 PM

Very good initiative Dr Beniwal kash aap ki tarah hamara samaz jo apnee aap ko padha likha samzta hai soch lee adhee to vah dekh hi nahi patee ki ristee—– ho jatee Aaj parent are in critical position there fore every society should think upon this otherwise one day it will take very serious problem it is just like a mobile nasee ki tarh hota ja raha hai I want to write down many more but again thank Dr Manju God bless upon you

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