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कचरे में डूबता उदयपुर: हमारी गरिमा पर तमाचा, हमारी नागरिक चेतना की अग्नि परीक्षा

Reported By : Padmavat Media
Published : May 24, 2025 11:33 PM IST
कचरे में डूबता उदयपुर
लेखक: यशवर्धन राणावत- उदयपुर मंथन – एक संवाद

कचरे में डूबता उदयपुर: हमारी गरिमा पर तमाचा, हमारी नागरिक चेतना की अग्नि परीक्षा

उदयपुर—झीलों की नगरी, भारत के पर्यटन मानचित्र का गौरव—आज कचरे के ढेरों के बीच कराह रहा है। पर्यटन स्थलों की सुंदरता, शांति और संस्कृति को किसी और ने नहीं, बल्कि हमारी खुद की लापरवाही और प्रशासन की निष्क्रियता ने बदरंग कर दिया है।

देशभर में ‘स्वच्छ भारत’, ‘विजन 2047’ और ‘विश्वगुरु’ बनने के नारे गूंज रहे हैं, लेकिन उदयपुर की सड़कों पर बिखरा कचरा और उस पर मंडराते आवारा जानवर उस पूरे विमर्श का मज़ाक उड़ाते प्रतीत होते हैं।

स्वरूप सागर, नयापुल, अंबापोल, ब्रह्मपोल, सहेली नगर, शास्त्री सर्किल, 100 फीट रोड जैसी कई अन्य जगहें—जहाँ देश-विदेश के सैलानी इतिहास को देखने आते हैं—अब बदबू और गंदगी के लिए जानी जा रही हैं। रहवासी कॉलोनियों का हाल भी अलग नहीं है। खुले कचरे पर घूमते हुए आवारा कुत्ते, सूअर और गायें अब आम दृश्य बन चुके हैं। यह विचलित करने वाले दृश्य रोज़ाना देशी और विदेशी पर्यटक देख रहे हैं—कैमरे में कैद कर रहे हैं और पूरी दुनिया में साझा कर रहे हैं। क्या यही है वह वैश्विक छवि जो उदयपुर को मिलनी चाहिए ?

जब दुनिया भर से पर्यटक हमारी विरासत, संस्कृति और सुंदरता की तलाश में उदयपुर आते हैं, तो उनका सामना और स्वागत खुले कचरे और उपेक्षा से होता है। उनके कैमरे झूठ नहीं बोलते—और वे तस्वीरें दूर-दूर तक जाती हैं। क्या अब यही है हमारी वैश्विक पहचान ?
और क्या यही है हमारी ‘गौ रक्षा’? क्या यह दृश्य हमारी सनातन संस्कृति का अपमान नहीं है? जिन गायों को हम माँ कहते हैं, उन्हें प्लास्टिक और गंदगी खाते हुए देखना हमारी नैतिक हार है। हम गायों को सत्ता तक पहुंचने का प्रतीक बनाते हैं, उन्हें पवित्रता का दर्जा देते हैं — लेकिन फिर उन्हीं गायों को सड़कों पर कचरा खाने के लिए छोड़ देते हैं। यह पाखंड हमारे ज़मीर और हमारे शहर — दोनों पर धब्बा है।

कुत्तों के काटने की घटनाएं तेजी से बढ़ रही हैं, पर समाधान के बजाय सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का हवाला देकर एनजीओ (NGO) केवल लीपापोती करते हैं। आम जनता के स्वास्थ्य और सुरक्षा का जिम्मा आखिर कौन लेगा ?

नगऱनिगम के लिए तो जैसे ये विषय कभी रहा ही नहीं। हर बार बोर्ड चुना जाता है, बड़े वादे किए जाते हैं, और फिर शहर की दीवारें, सड़कों पर पड़े कचरे के ढेर, हर कोना बस एक ही जवाब देता है—‘नहीं, कोई बदलाव नहीं हुआ।’

यह समस्या आज की नहीं है। 20 साल से हम इस समस्या से जूझ रहे हैं, पर न कोई स्थायी समाधान आया, न कोई प्रभावशाली योजना।

अब समय आ गया है कि हम राजनीतिक नारों से ऊपर उठें और ऐसी योग्य, प्रतिबद्ध और दूरदर्शी व्यक्तियों को चुनें जो वाकई इस शहर के कर्तव्यनिष्ठ सेवक बन सकें।

यह सिर्फ कचरे की नहीं, हमारी चेतना की, हमारी अस्मिता की लड़ाई है। हमें उनके सपनों का शहर बनाना है जिन्होंने इसकी नींव रखी—दूरदर्शी महाराणा उदय सिंह, जिन्होंने 1559 में उदयपुर बसाया, और प्रातः स्मरणीय वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप, जिन्होंने अपने आत्मबल, त्याग, तपस्या, समर्पण और बलिदान से मेवाड़ की आन-बान-शान के लिए संघर्ष किया।

उदयपुर की विरासत, पर्यटन अर्थव्यवस्था और नागरिक ढांचे को ध्यान में रखते हुए तैयार किए गए कचरा संकट के व्यावहारिक समाधान:

  • स्रोत स्तर पर विकेन्द्रीकृत कचरा पृथक्करण :
    हर वार्ड में घर-घर जाकर कचरा संग्रहण के दौरान गीला, सूखा और खतरनाक कचरे का पृथक्करण अनिवार्य किया जाए। इसके लिए रंग-कोडित डस्टबिन वितरित किए जाएं और पालन न करने वालों पर जुर्माना लगाया जाए।
  • निर्धारित स्थलों पर कचरा पात्रों की स्थापना :
    शहरभर में उपयुक्त स्थानों पर कचरा पात्र लगाए जाएं। हर तीन माह में नगर निगम द्वारा “सबसे स्वच्छ मोहल्ला” प्रतियोगिता कराई जाए और विजेताओं को पुरस्कृत किया जाए।
  • विरासत-संवेदनशील कचरा प्रबंधन क्षेत्र :
    पुराना शहर, झील किनारे और स्मारकों जैसे धरोहर क्षेत्रों को “शून्य कचरा क्षेत्र” घोषित किया जाए। यहां विशेष रूप से हाथ से सफाई, इको-फ्रेंडली डस्टबिन और प्रतिदिन कचरा ऑडिट किया जाए ताकि पर्यटक सौंदर्य बना रहे।
  • स्थानीय स्टार्टअप्स के साथ सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP):
    स्थानीय स्टार्टअप्स को कचरे से संसाधन जैसे रीसायक्लिंग, खाद निर्माण और प्लास्टिक पुनः उपयोग हेतु PPP मॉडल के माध्यम से प्रोत्साहन दिया जाए – भूमि, कचरा सामग्री और अनुदान प्रदान कर।
  • ‘कचरे से खजाना’ सूक्ष्म कम्पोस्टिंग यूनिट्स :
    पार्कों, स्कूलों, होटलों और बाजारों में छोटे कम्पोस्ट यूनिट लगाए जाएं जो गीले कचरे को जैविक खाद में बदलें – यह उदयपुर की फूल सजावट और आतिथ्य की मांगों के लिए उपयुक्त होगा।
  • स्मार्ट कचरा निगरानी प्रणाली :
    कचरा वाहनों के लिए GPS और RFID ट्रैकिंग, डस्टबिन में फिल-लेवल सेंसर और एक रियल-टाइम मॉनिटरिंग डैशबोर्ड विकसित किया जाए जिससे नगर निगम को निगरानी और जनता को पारदर्शिता मिल सके।
  • झील किनारे और पर्यटन क्षेत्रों में स्वच्छता ब्रिगेड :
    गणगौर घाट, फतेहसागर, सज्जनगढ़ जैसे अन्य पर्यटन स्थलों पर स्थानीय लोगों, स्वयंसेवकों और NGOs को प्रशिक्षित कर सफाई ब्रिगेड तैनात की जाए। इन्हें प्रतिदिन की सफाई लक्ष्यों और जनजागरण अभियानों से जोड़ा जाए।
  • जन-जागरूकता के लिए सांस्कृतिक समावेशन :
    लोक कला, कठपुतली नाटक, दीवार चित्रण और स्थानीय प्रभावशाली व्यक्तित्वों द्वारा स्वच्छता संदेशों को जन-जन तक पहुँचाया जाए ताकि यह अभियान भावनात्मक रूप से जनता से जुड़ सके।
  • निर्माण व व्यवसायिक कचरे पर सख्त नियंत्रण :
    निर्माण स्थलों पर ही कचरा संसाधन अनिवार्य किया जाए। इसके अलावा होटलों, रेस्टोरेंट्स और इवेंट वेन्यूज को अवैध डंपिंग या बिना पृथक्करण के कचरा फेंकने पर भारी जुर्माना लगाया जाए।

स्वच्छता सिर्फ जिम्मेदारी नहीं, यह उदयपुर की पहचान और पर्यटन की आत्मा है। अब समय है कि हम सब मिलकर ‘स्मार्ट सिटी’ नहीं, संवेदनशील सिटी बनाएं – जहां स्वच्छता, सांस्कृतिक गर्व और पर्यावरणीय सजगता एक साथ कदम बढ़ाएं।

उठो, उदयपुर!
ये वक्त जागने का है, अपने अधिकारों को पहचानने का है, और उस बदलाव को लाने का है जो सदियों तक याद रखा जाए।
अब नहीं तो कब?

इस महाराणा प्रताप जयंती, 29 मई 2025, पर आइए संकल्प लें — जिस भूमि की रक्षा के लिए उन्होंने वीरता से संग्राम किया, उसे हम खुले कचरे से अपमानित नहीं होने देंगे। हमारे कर्म ही उनके स्वाभिमान और गौरव की सच्ची श्रद्धांजलि हो । जय हिंद।

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