घरेलू कामगार महिलाओं को सही मज़दूरी और सम्मान की ज़िन्दगी कब मिलेगी?
अक्सर हम देखते हैं कि महिलाएं घर का सारा काम करने के साथ-साथ दूसरे के घरों में काम करके खुद पैसा भी कमाती हैं और अपने घर का खर्च चलाती हैं। घरों में काम करने वाली लड़कियों और महिलाओं के साथ अत्याचार और शोषण की बहुत सी घटनाएं हमें आजकल देखने-सुनने को मिल जाती हैं।
शहरों में ज़्यादातर लोगों की आर्थिक स्थिति कमज़ोर होती है, जिसके चलते महिलाओं को भी काम करना पड़ता है। क्योंकि ज़्यादातर महिलाएं शिक्षा से वंचित हैं और उन्हें ऐसा कोई कौशल भी नहीं आता है, जिससे उन्हें रोज़गार मिल सके। इसके चलते वे घरेलू कार्य करने को मजबूर होती हैं। देश में बड़ी संख्या में घरेलू कामगार हैं, जिनमें ज़्यादातर महिलाएं हैं।
चोर की नज़र से हम इन्हें क्यों देखते हैं?
सबसे चिंताजनक बात तो यह है कि इन्हें अभी तक कामगार का दर्ज़ा भी नहीं दिया गया है। लोगों को लगता है कि खाना बनाना कोई मज़दूरी नहीं होती है, इसकी वजह से उनको ज़्यादा घंटे काम करना पड़ता है। काम का कोई निर्धारित समय नहीं होता है और ना ही मेहनताना निर्धारित होता है।
उनकी मजबूरी का फायदा उठाते हुए, इन महिलाओं को कम पैसों में ज़्यादा काम करना पड़ता है और काम की सुरक्षा भी नहीं होती। और तो और, जब मन आता है तो उनको काम से निकाल दिया जाता है। निकालने से पहले कोई नोटिस नहीं दिया जाता और छुट्टी लेने पर पैसा भी काटा जाता है। घरेलू कामगार महिलाओं को चोर की नज़र से भी देखा जाता है।
घर में कोई भी चोरी होती है तो उन्हीं पर सबसे पहले शक किया जाता है, जबकि इन्ही महिलाओं की वजह से अधिकारी से लेकर बिज़नेसमैन लोग अपने ऑफिस समय से पहुंचते हैं। कभी-कभी घर के काम के साथ-साथ इन महिलाओं को उनकी सेवा भी करनी पड़ती है, जैसे हाथ-पैर दबाना, मालिश करना।
घरेलू कामगार के काम को अन्य कामों की तरह नहीं देखा जाता है और समाज में उन्हें इज़्ज़त भी नहीं दी जाती है। उन्हें रोज़ बहुत मेहनत करनी पड़ती है, तब जाकर माह के अंत में उनको मेहनताना मिलता है। बीच में कोई दिक्कत, जैसे बीमार पड़ने पर भी वे छुट्टी नहीं कर सकती हैं। इनकी दिनचर्या बहुत लंबी और थकाने वाली होती है।
इन्हें सुबह अपने घर के साथ-साथ, दूसरों के घरों का काम करना पड़ता है, जिससे उन्हें शरीर में दर्द बना रहता है और वे अपने स्वास्थ्य का खयाल नहीं रख पाती हैं। समय के साथ कई महिलाएं गंभीर बीमारियों की चपेट में आ जाती हैं।
यौन शोषण पर भी नहीं बुलंद कर पाती हैं आवाज़
घर के सब काम करने के बावजूद आज तक उनके साथ भेदभाव का व्यवहार हो रहा है। वे जिस घर में काम करती हैं, वहां का खाना-पानी नहीं पी-खा सकती हैं। खाना बनाते समय कुछ खा नहीं सकती और वहां के शौचालय का इस्तेमाल तक नहीं कर सकतीं। खाना खराब बन जाने पर कभी-कभी तो उनको काम से निकाल भी दिया जाता है।
होली-दिवाली जैसे त्यौहारों के समय इन महिलाओं को घरों की पूरी धुलाई-सफाई करनी पड़ती है और खाने के तरह-तरह के पकवान भी बनाने पड़ते हैं। इस तरह के अतिरिक्त श्रम के लिए उनको कुछ पैसा भी अलग से नहीं मिलता है। घरेलू कामगार के घरों के आसपास रहने वाले उनको सम्मान की नज़र से नहीं देखते हैं।
चिंताजनक तो यह भी है कि घरेलू कामगारों के बच्चे भी शिक्षा से वंचित हैं और वे भी कामगार बनने की तरफ बढ़ रहे हैं। ज़्यादातर किशोरियां कुपोषित हैं और एनीमिया की शिकार हैं। बहुत सी किशोरियों के साथ शारीरिक/यौन शोषण और हिंसा भी होती है और वे कुछ कर नहीं पाती हैं।
घर खर्च कैसे चले, यह उनके लिए चिंता का विषय
यह चिंता का विषय है कि सरकार इस पर कोई कदम नहीं उठा रही है। पिछले लगभग 2 साल से हम कोरोना महामारी से लड़ रहे हैं, इस दौरान सबसे ज़्यादा घरेलू कामगार को परेशानियां हुई हैं। ज़्यादातर लोग कोरोना वायरस के डर से घरेलू कामगार को घर से निकाल दे रहे हैं। जो कुछ महिलाएं घर से नहाकर जाती हैं मगर उन्हें अपने काम पर पहुंचकर भी दोबारा से नहाना पड़ता है, जिससे वे बीमार पड़ जाती हैं।
सर्दी-खांसी-ज़ुखाम होने पर वे डर जाती हैं और मानसिक रूप से भी ये महिलाएं बीमार हो जाती हैं। बहुत से घरेलू कामगार लोगों का काम लॉकडाउन में छूट गया, इसके चलते वे बेरोज़गार हो गई हैं। बहुत से लोगों के घरों में खाने को भी कुछ नहीं था। घर खर्च कैसे चले यह उनके लिए एक सतत चिंता का विषय बन गया था। ऐसे में उनको कोरोना हो जाने पर वे ‘इतना पैसा कहां से आएगा कि इलाज करा सकें’, सोचकर भी अत्यधिक परेशान हैं। एक तो काम से निकाल दिए जाने का डर और दूसरा कोरोना वायरस का डर।
मौजूदा समय में महिलाओं के लिए अवसर वैसे भी कम हैं। जैसे हालात अब बन रहे हैं, उनसे तो महिलाएं हज़ारों साल विकास चक्र में पीछे चली जाएंगी। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, भारत में घरेलू कामगारों की संख्या लगभग 47 लाख है, जिनमें से 30 लाख महिलाएं हैं।
वहीं, घरेलू कामगारों की संख्या का असल आंकड़ा अनुमानित रूप से 2 से 8 करोड़ के बीच है। इस बड़ी आबादी के लिए भारत की सरकार को बड़े कदम उठाने चाहिए, जिससे उन्हें असुविधा ना हो। सरकार को घरेलू कामगार समुदाय के लिए स्वास्थ्य और शिक्षा पर नई नीति बनानी चाहिए। घरेलू कामगार महिलाओं के बच्चे एक अच्छा जीवन जी सकें, यह हम सब की ज़िम्मेदारी है।