
पर्यटन विशेषज्ञ | उपाध्यक्ष, होटल एसोसिएशन उदयपुर
संगठन मंत्री, मेवाड़ क्षत्रिय महासभा संस्थान,
राष्ट्रीय उपाध्यक्ष (बौद्धिक प्रकोष्ठ), एंटी करप्शन एंड क्राइम कंट्रोल कमेटी.
प्रातः स्मरणीय वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप जयंती पर उदयपुर एवं मेवाड़ की जनता के नाम संदेश
महाराणा प्रताप जयंती के पावन अवसर पर, मैं उस अमर ज्वाला को नमन करता हूँ जो साहस, त्याग, समर्पण और धर्म की प्रतीक बनकर हर सच्चे मेवाड़ी के हृदय में आज भी प्रज्वलित है।
मेवाड़ सदियों से संतों, वीरों और विचारशील शूरवीर राणाओं की पावन भूमि रही है, परंतु इन सभी गौरवशाली परंपराओं के बीच महाराणा प्रताप का व्यक्तित्व एक अनूठी ऊंचाई पर प्रतिष्ठित है। वे केवल युद्ध कौशल के प्रतीक नहीं थे, बल्कि वे अटल नैतिकता, अदम्य स्वतंत्रता और सिद्धांतों पर आधारित नेतृत्व के साक्षात उदाहरण थे। उन्होंने केवल तलवार से नहीं, अपने निर्णयों से इतिहास रचा — सुविधा नहीं, संकल्प चुना; अकेले खड़े रहना मंजूर किया, पर आत्मसमर्पण नहीं किया।
आज जब उदयपुर आधुनिकता, समृद्धि और नगरीय विकास की ओर अग्रसर है, यह जयंती हमें केवल एक औपचारिक पर्व के रूप में नहीं, आत्मनिरीक्षण और जागरण के रूप में मनानी चाहिए। हम केवल स्वर्णिम अतीत के उत्तराधिकारी नहीं हैं, हम उस धरोहर के जीवंत प्रहरी हैं। हमारे महलों, झीलों, मंदिरों, घाटों, बावड़ियों, हवेलियों और दुर्गों का महत्व केवल दर्शनीय स्थलों के रूप में नहीं है, बल्कि वे एक सभ्यता की आत्मा के जीवंत प्रमाण हैं। महाराणा प्रताप जयंती के पावन दिन हमें सामूहिक रूप से विरासत संरक्षण हेतु स्वेच्छा से संकल्पित होना चाहिए ।
इसलिए आज हमें स्वयं से पूछना होगा — क्या हम वास्तव में महाराणा प्रताप के मार्ग पर चल रहे हैं ? या फिर उनकी स्मृति को केवल समारोहों, दीप प्रज्वलन और पुष्पांजलियों तक सीमित कर चुके हैं, जबकि उनके आदर्शों से विमुख हो चले हैं ?
पर्यटन, विशेषकर हमारे जैसे सांस्कृतिक शहर में, केवल आंकड़ों का विषय नहीं है — यह कहानी कहने का माध्यम है। वह कहानी जिसमें चरित्र हो, दिखावा नहीं; गहराई हो, केवल भव्यता नहीं। हमारा विकास केवल सुविधाओं तक सीमित न रहे — उसमें दूरदर्शिता झलकनी चाहिए। हमारी मेहमाननवाज़ी केवल भौतिक सुख न दे — वह संस्कृति और आत्मा से जुड़ाव भी दे।
महाराणा प्रताप हमें यह सिखाते हैं कि मान-सम्मान पद में नहीं, बल्कि त्याग में होता है। यदि हम — व्यक्तिगत और संस्थागत रूप से — उनके त्याग और सेवा भावना का अंशमात्र भी आत्मसात कर लें, तो हम केवल उनकी स्मृति का सम्मान नहीं करेंगे, बल्कि आनेवाले भविष्य को भी नवगठित करेंगे। सच्चा सम्मान पद से चिपके रहने में नहीं, बल्कि नई पीढ़ी को आगे बढ़ाने, उन्हें मार्गदर्शन देने और नेतृत्व को कर्तव्य के रूप में निभाने में है, अधिकार के रूप में नहीं।
यह बात आज के समय में विशेष रूप से प्रासंगिक है, जब अनेक पदों को व्यक्तिगत अधिकार और थोपे गए उत्तराधिकार के रूप में देखा जाने लगा है। महाराणा प्रताप हमें सिखाते हैं कि सेवा करना शासन करने से महान है। यदि हम सच में उन्हें पूजते हैं, तो हमें उदाहरण बनना होगा — जहाँ ज़रूरत हो, वहाँ पद छोड़ने का साहस, नई सोच को अपनाने की खुली भावना, और सेवा से नेतृत्व अर्जित करने की संस्कृति विकसित करनी होगी। ऊर्जावान युवाओं और नवाचार के लिए समर्पण भाव से तैयार रहना होगा ।
महाराणा प्रताप की समावेशिता आज के सामाजिक परिप्रेक्ष्य में एक अमूल्य संदेश है। उन्होंने हकीम खान सूर, एक पठान, को अपनी सेना का सेनापति नियुक्त किया — न कि धर्म के आधार पर, बल्कि निष्ठा और प्रतिभा के बल पर। उन्होंने भील समुदाय को संघर्ष में न केवल अपने साथ लिया, बल्कि उन्हें गहरी श्रद्धा और सम्मान भी दिया। महाराणा प्रताप ने जाति, धर्म या वर्ग से ऊपर उठकर मानवता, कर्म और चरित्र को महत्व दिया। आज जब समाज में वैमनस्य बढ़ रहा है, उनका यह दृष्टिकोण हमारे लिए सशक्त मार्गदर्शक बन सकता है।
उनका उदार और करुणामय हृदय भी एक उज्ज्वल आदर्श है। जब मुगल महिलाओं और बच्चों को बंदी बनाया गया, तो उन्होंने प्रतिशोध नहीं लिया — बल्कि स्वयं अपने पुत्र अमरसिंह के माध्यम से उनकी मर्यादित और सुरक्षित वापसी सुनिश्चित की। यह घटना हमें सिखाती है कि दया से रहित शक्ति तानाशाही बन जाती है, और करुणा से रहित विजय, खोखली होती है।
इस महाराणा प्रताप जयंती पर आइए, केवल परंपरा का निर्वाह न करें — अपने भीतर बदलाव की ज्योति प्रज्वलित करें। आइए, हम अपनी धरोहर की रक्षा केवल पत्थरों में नहीं, अपने व्यवहार और विचारों में करें। ऐसा विकास करें जो केवल रास्तों को नहीं, बल्कि पीढ़ियों को उनकी जड़ों से जोड़े। ऐसा पर्यटन बढ़ाएं जो केवल सुंदरता न दिखाए, बल्कि साहस, संस्कृति और सततता की कहानी कहे। और सबसे अहम — ऐसा नेतृत्व गढ़ें जो महाराणा प्रताप की तरह ही सर्व-समाज के लिए पूर्ण श्रद्धा से समर्पित हो।
यह दिन केवल गर्व का नहीं — प्रतिज्ञा का दिन हो। आत्मचिंतन और आत्म जागरण का दिन हो ।
जय मेवाड़। जय हिंद।