रातों-रात ओवैसी की राष्ट्रभक्ति: यह “अल-तकिया” तो नहीं? – शीतल गहलोत, राष्ट्रीय अध्यक्ष, राष्ट्रीय वैदिक हिंदू संगठन भारत
“जय फिलिस्तीन” के नारे संसद में गूंजाने वाले असदुद्दीन ओवैसी का अचानक राष्ट्रभक्ति की ओर झुकाव चौंकाने वाला है। क्या यह वास्तव में उनका हृदय परिवर्तन है या इस्लामिक राजनीति की एक पुरानी चाल ‘अल-तकिया’?
यह वही फिलिस्तीन है, जिसके आतंकी संगठन ‘हमास’ का नाम कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले में जुड़ा है। वहीं ओवैसी अब प्रधानमंत्री से आतंकियों और पाकिस्तान को कड़ी सज़ा देने की माँग कर रहे हैं। यह वही ओवैसी हैं, जिनके भाई ने चुनावी मंच से खुलेआम 15 मिनट के लिए पुलिस हटाकर हिंदुओं को सबक सिखाने की धमकी दी थी। तब ओवैसी मौन साधे बैठे थे।
आज जब विपक्ष मुस्लिम तुष्टिकरण के कारण चुप्पी साधे बैठा है, ओवैसी ने पहलगाम हमले को राष्ट्रवाद के मंच पर लाकर अपनी छवि को बदलने की कोशिश की है। अचानक सोशल मीडिया और टीवी चैनलों पर उन्हें ‘सच्चा राष्ट्रभक्त’ और ‘राष्ट्रपति पद के योग्य’ बताया जाने लगा है। क्या यह सब एक गहरी साज़िश का हिस्सा नहीं हो सकता?
हम सब जानते हैं कि ओवैसी परिवार जिन्ना की विचारधारा का समर्थन करता रहा है। उनके बयानों से समय-समय पर हिंदू विरोधी ज़हर झलकता रहा है। “मोदी हमेशा प्रधानमंत्री नहीं रहेगा, योगी हमेशा मुख्यमंत्री नहीं रहेगा” जैसे बयानों से यह स्पष्ट है कि उनका असली एजेंडा क्या है।
क्या यह आश्चर्यजनक नहीं कि मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति करने वाले ओवैसी अचानक पाकिस्तान को सज़ा देने की माँग करने लगे? जबकि अतीत में वही पाकिस्तान के समर्थन में ‘पाकिस्तान ज़िंदाबाद’ जैसे नारे लगाने वालों को मंच प्रदान करते रहे हैं।
आज जब कांग्रेस और कुछ विपक्षी नेता पाकिस्तान को मानसिक समर्थन दे रहे हैं, ओवैसी का यूं प्रधानमंत्री से सख्त कार्रवाई की मांग करना और उसका मजहबी समाज द्वारा शांतिपूर्वक समर्थन पाना — क्या यह किसी रणनीति का हिस्सा नहीं है?
ओवैसी अच्छी तरह जानते हैं कि हिंदुओं की स्मृति शक्ति बहुत कमज़ोर होती है। वह यह भी जानते हैं कि कुछ हिंदू उनकी एक-दो राष्ट्रवादी बातों से इतना प्रभावित हो जाते हैं कि उनकी तस्वीरों को दूध से नहलाने लगते हैं। यही लोग कुछ दिनों बाद फिर से AIMIM के एजेंडे का हिस्सा बन जाते हैं।
क्या हम यह भूल चुके हैं कि हैदराबाद रियासत में AIMIM के समर्थन से हुए नरसंहार में दो लाख से अधिक हिंदुओं की निर्मम हत्या की गई थी?
अब समय है कि हिंदू समाज इस “अल-तकिया” की रणनीति को समझे। इस्लामिक एजेंडे के खिलाफ सचेत रहे, क्योंकि राष्ट्रभक्ति केवल शब्दों से नहीं, कर्मों से सिद्ध होती है। हमें समझना होगा कि जब मजहबी जनसंख्या 30–40% तक पहुंचती है, तब न संविधान काम आता है, न सेक्युलर नेता।
यह जरूरी है कि हम इतिहास और वर्तमान दोनों से सीखें। ओवैसी का अचानक राष्ट्रप्रेम एक गहरी राजनीतिक रणनीति का हिस्सा हो सकता है। ऐसे में हिंदुओं को विशेष सावधानी बरतने की आवश्यकता है।
रातों-रात ओवैसी की राष्ट्रभक्ति: यह “अल-तकिया” तो नहीं?
Published : May 23, 2025 11:57 AM IST
Updated : May 23, 2025 11:58 AM IST