बिना आसन व मुद्रा के कोई आराधना नहीं हो सकती : राष्ट्रसंत आचार्य चन्द्रानंद सागर सुरिश्वर
आचार्य चन्द्रानंद सागर सुरिश्वर महाराज संघ चौगान मंदिर में प्रवेश
उदयपुर । आयड़ तीर्थ स्थित श्री जैन श्वेताम्बर महासभा के तत्वावधान में शनिवार को आचार्य चन्द्रानंद सागर सुरिश्वर महाराज संघ का आयड़ तीर्थ से विहार हुआ। महासभा के महामंत्री कुलदीप नाहर ने बताया कि आचार्य आयड़ तीर्थ से विहार होकर शिक्षा भवन चौराहा स्थित चौगान मंदिर पदम्मनाभ स्वामी मंदिर में प्रवेश किया। आचार्य संघ के सानिध्य में आरती, मंगल दीपक, सुबह सर्व औषधी से महाअभिषेक एवं अष्ट प्रकार की पूजा-अर्चना की गई। आयोजित धर्मसभा में आचार्य चन्द्रानंद सागर सुरिश्वर ने प्रवचन में कहां कि भगवान की आज्ञा का पालन करना ही श्रावक-श्राविकाओं का कर्तव्य है। शरीर में प्राण नहीं तो शरीर कलेवर है। धर्म क्रिया में भगवान की आज्ञा का पक्षपात नहीं तो धर्मक्रिया ही निष्प्राण है। विद्या प्राप्त करनी है तो प्रमाद छोडऩा होगा। प्रमाद छोड़ बिना कभी आध्यात्मिक हो या भौतिक किसी तरह की विद्या की प्राप्ति नहीं हो सकती है। जैन रामायण का वर्णन करते हुए बताया कि किस तरह दशामुख ओर उसके भाईयों को उसकी माता केतकी बताती है कि लंका का राज राजा इन्द्र ने उसके परदादा को मारकर छीन लिया। दशानन अपने भाई कुम्भकर्ण व विभीषण के साथ वन में जाकर साधना करता है। वहां दशानन एक हजार तरह की विद्याएं सीखता है। धर्मसभा में जिनशासन की आराधना व साधना करते हुए आसन व मुद्रा किस तरह होनी चाहिए इस बारे में समझाया। उन्होंने कहा कि बिना आसन व मुद्रा के कोई आराधना नहीं हो सकती। बिना आसन के मुद्रा भी फेल हो जाती है। मुद्रा व आसन का करीबी सम्बन्ध है। इस अवसर पर अध्यक्ष डॉ. शैलेन्द्र हिरण, सम्पत चैलावत, महासभा अध्यक्ष तेजसिंह बोल्या, राजेन्द्र जवेरिया, ताराचंद केलवाड़ा वाला, बसंत मारवाड़ी, हस्तीमल लोढ़ा, देवेन्द्र मेहता आदि मौजूद रहे।