कश्मीरी नेताओं ने मोदी सरकार से अनुच्छेद 370 को फिर से बहाल करने की क्या माँग छोड़ दी है?
कश्मीर से जुड़े मामलों पर नज़र रखने वालों का कहना है कि बीते कुछ वक़्त से कश्मीर में ज़मीनी हालात में बदलाव होता कम ही दिखा है, लेकिन इसी सप्ताह 24 जून को राजधानी दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ हुई जम्मू कश्मीर के नेताओं की बैठक के बाद एक बार फिर प्रदेश में राजनीतिक रूप से हाशिए पर पड़ी राजनीतिक पार्टियों में जैसे नई जान आ गई है.
जानकारों का कहना है कि कई हलकों में जम्मू कश्मीर के नेताओं के साथ हुई बैठक को मोदी के कथित यू-टर्न के रूप में देखा जा रहा है, लेकिन असल में ऐसा नहीं है.
कश्मीरी इतिहसकार और विश्लेषक पीर ग़ुलाम रसूल ने बीबीसी से कहा, “इस बैठक के ज़रिए कश्मीर की स्वायत्तता की मांग करने वालों को बिना कोई ठोस आधार दिए मोदी के ख़िलाफ़ पाकिस्तान के कूटनीतिक हमले और उन पर मुसलमान विरोधी होने के आरोप का बचाव कर लिया गया है.”
रसूल समेत कई और विश्लेषक भी ये मानते हैं कि जम्मू कश्मीर के 14 नेताओं के साथ क़रीब साढ़े तीन घंटे चली ये बैठक बीते 22 महीनों में विदेश नीति में मोदी की सबसे बड़ी उपलब्धि है.
‘अंतराराष्ट्रीय छवि को सुधार दिया’
श्रीनगर में मौजूद वरिष्ठ पत्रकार हारून रेशी कहते हैं, “5 अगस्त 2019 को मोदी सरकार ने जम्मू कश्मीर में संविधान के अनुच्छेद 370 को ख़त्म कर इसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांट दिया. इसके बाद केंद्र सरकार ने यहां काफ़ी निवेश किया और अपने फ़ैसले को सही बताने के लिए कूटनीति का इस्तेमाल कर विदेशी नेताओं के दौरे भी करवाए.”