“यह दोस्ती, हम नहीं तोड़ेंगे, छोड़ेंगे दम मगर तेरा साथ ना छोड़ेंगे….” शोले फिल्म के जय और वीरू जैसी दोस्ती थी मोहित और मदन की। दोनों एक दूसरे के साथ काफी लंबा समय बिताते थे। हर रोज शाम को साथ घूमने जाते थे लंबी-लंबी बातें करते थे, अपनी परेशानियों को अपनी खुशियों को एक दूसरे के साथ सांझा करते थे। दोनों का साथ इतना गहरा था कि दोनों ही एक दूसरे के बिना जीने की कल्पना भी नहीं कर पाते थे। एक दिन मोहित को भारी आर्थिक नुकसान हो गया और उसके चलते वह बहुत हताश और निराश हो गया। उसने धीरे-धीरे अपने दोस्त से बातें करना कम कर दी वे शाम को मिलते थे बैठते थे लेकिन उनमें पहले जैसी बात नहीं रही। मदन को भी लगने लगा कि अब उसका वक्त बर्बाद होता है क्योंकि मोहित हमेशा अपनी दुख भरी बातें लेकर बैठ जाता था या फिर अक्सर खामोश रहने लगा था। धीरे-धीरे उनकी मुलाकातें और बातें कम होने लगी अब शाम को भी वे कभी-कभी मिलते थे। अचानक जैसे सब कुछ बदल गया मदन अपनी जिंदगी में व्यस्त हो गया और उसने कभी जानने की भी कोशिश नहीं की कि ऐसा क्या हुआ जिसके कारण उनकी बरसों पुरानी दोस्ती में इतना बड़ा बदलाव आ गया। एक दिन मदन को किसी कारण से नौकरी से निकाल दिया। वह निराश हताश घर आकर बैठ गया, उसकी आंखों के आगे अंधेरा छा गया उसे समझ नहीं आ रहा था कि अब वह अपने परिवार का पालन पोषण कैसे करेगा उसे समझ नहीं आ रहा था कि अब इस उम्र में दूसरी नौकरी कहां ढूंढेगा ? इस सब परेशानी में जब वह शाम को अकेला बैठा था तो अचानक उसकी आंखों के आगे मोहित का चेहरा आ गया जिसे उसने लगभग भुला ही दिया था । आज उसे अपने उस दोस्त का दर्द महसूस हो रहा था, आज उसे महसूस हो रहा था कि उसके पास भी कोई ऐसा हो जो उसके दर्द को समझें और उसी की सहायता करें । उसे महसूस हो रहा था कि उसे मोहित की सहायता करनी चाहिए थी, लेकिन क्योंकि उसका काम सही चल रहा था इसलिए उसने दोस्त की बातों को ज्यादा महत्व नहीं दिया और उसके दुख दर्द को नहीं समझा । yeh सोचते- सोचते उसकी आंखों में पानी आ गया, उसने दरवाजा बंद किया और सीधा अपने दोस्त के घर गया जैसे ही उसने दरवाजा खटखटाया तो मोहित ने दरवाजा खोलते ही उसे गले से लगा दिया। आज दोनों दोस्त जी भर कर रो रहे थे । दोनों मजबूती के साथ खड़े हो गए थे एक दूसरे के लिए एक दूसरे के साथ । यह दोनों समझ गए थे कि जो बुरे वक्त में काम आता है वही सच्चा दोस्त होता है। दोस्ती का नाम सिर्फ खुशियां साथ बांटना नही है बल्कि एक दूसरे के गम में भी साथ खड़े रहना है।
डॉ. अंजू बेनीवाल
समाजशास्त्री
राजकीय मीरा कन्या महाविद्यालय, उदयपुर