हिंदू समाज अपने अस्तित्व का रक्षक स्वयं बने
मेरठ । बांग्लादेश में हिंदुओं पर अत्याचार और हत्याओं का सिलसिला अभी थमा भी नहीं था कि कश्मीर के पहलगाम में पर्यटकों से उनका नाम और धर्म (जाति नहीं) पूछ-पूछकर ताबड़तोड़ गोलियां चलाकर 40 से अधिक हिंदुओं की हत्या कर दी गई। विल डुरांट (एक अमेरिकन इतिहासकार) की रिपोर्ट के अनुसार, 1200 वर्षों में 9 करोड़ से भी अधिक हिंदुओं की मुसलमानों द्वारा हत्याएं की गईं। अर्थात् औसतन हर 1 घंटे में 9 हिंदुओं की हत्या हुई।
विश्व को हिंदुओं की और कितनी हत्याएं चाहिए? भारत के छींकने तक पर प्रतिक्रिया देने वाले, ज्ञान बाँटने वाले देश, हिंदुओं की इस्लामी जिहादियों द्वारा हो रही हत्याओं पर मौन क्यों साध लेते हैं? भारत में विपक्षी दलों को हिंदुओं की हत्याओं पर सांप क्यों सूंघ जाता है?
कश्मीर के पहलगाम हमले की पृष्ठभूमि में एक बात और स्पष्ट होती है — जब एक हिंदू अपनी ही भूमि पर, अपने ही धर्म, अपनी आस्था, अपने अस्तित्व और अपनी राष्ट्रवादी सरकार के होते हुए भी निशाना बनाया जाए, तो यह केवल एक आतंकी हमला नहीं, बल्कि राष्ट्रीय अस्मिता पर सीधा प्रहार होता है।
अपने ही हिंदुस्तान में अगर हिंदू होना पाप बन जाए, और हमारे हिंदू होने के कारण हत्याएं होती रहें, तो इससे अधिक शर्मनाक क्या हो सकता है?
यह प्रश्न केवल क्रोध या आक्रोश का नहीं है, बल्कि प्रत्येक हिंदू के लिए आत्मचिंतन का विषय है। मीडिया और प्रचार माध्यमों ने वर्षों से हिंदुओं के मन में लोकतंत्र, संविधान और सरकारी व्यवस्था के प्रति ऐसा मीठा भ्रम पैदा किया है, मानो पूरा सरकारी तंत्र सिर्फ उसकी सुरक्षा में लगा हो। जबकि वास्तविकता यह है कि हिंदुओं पर हो रहे हमलों में वे असहाय और अकेले होते हैं। पुलिस और सेना केवल उनके मारे जाने के बाद पहुंचती है — और फिर शुरू होता है न्यायपालिका का कड़वा, असंवेदनशील कुचक्र, जो पीड़ित परिवारों को आर्थिक, मानसिक और शारीरिक रूप से तोड़ देता है।
हिंदुओं का यह भ्रम कि राज्य या केंद्र सरकारें हमारी रक्षा करेंगी — अब उनकी सबसे बड़ी कमजोरी बनता जा रहा है। बहुत छोटे होते परिवार, भोग-विलास की बढ़ती प्रवृत्ति, मनोरंजन में डूबा समाज, राष्ट्रीय चिंतन की कमी और सरकारों का हिंदुओं के प्रति दोहरा रवैया — यह सब हिंदू समाज के पतन के मील के पत्थर बन रहे हैं।
जब तक हिंदू पुरुष और मातृशक्ति अपने परिवार, अपने धर्म और अपनी मातृभूमि की रक्षा का दायित्व पूर्ण समर्पण के साथ नहीं उठाएंगे, तब तक जिहादी ताकतें हिंदुओं के अस्तित्व को कुचलने का प्रयास करती रहेंगी।
सिर्फ स्वयं के लिए जीना और धन उपार्जन करके घर चला लेना ही पुरुषार्थ नहीं होता। धर्म, धरती, परिवार और अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए स्वयं जागना और दूसरों को जगाकर भी क्रांति प्रारंभ करनी पड़ेगी।
आखिर कब तक हम शांति, धैर्य और “वसुधैव कुटुंबकम्” की भावना के नाम पर अपने हिंदू समाज की बलि चढ़ाते रहेंगे?
समय आ गया है कि हम अपनी चेतना को जागृत करें और अपने अस्तित्व के रक्षक स्वयं बनें। क्योंकि डर और पलायन, हमारे महापुरुषों ने हमें कभी सिखाया नहीं — और यही हमारे संघर्ष का सबसे सशक्त उत्तर है।
हिंदू समाज अपने अस्तित्व का रक्षक स्वयं बने
Published : April 23, 2025 8:16 PM IST
Updated : April 23, 2025 8:17 PM IST