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नारी तुम स्वर्णिम सवेरा

शीर्षक – नारी तुम स्वर्णिम सवेर

स्वर्ग धरा,प्रकृति हरा
हृदय में दृढ़ विश्वास भरा
नारी तुम स्वर्णिम
सवेरा
अग्रसर हो तुम इस सृष्टि में
ममता स्नेह सदैव तुम्हारी दृष्टि में
प्रेम डोर से बाँध
सबको रखती तुम
समष्टि में
खुश रहती सदा तुम दूसरों की संतुष्टि में
सदियों से दृढ़ शक्ति का हृदय में है,बसेरा।
नारी तुम स्वर्णिम सवेरा।

चलती सदा कठिन सफर में
चिराग जलाती अंधेरे डगर में
नीडर तुम रहती संघर्ष लहर में
इरादा फ़ौलाद सा तुम्हारे जिगर में
सफलता पाने को दिल में लक्ष्य का रहता डेरा।
नारी तुम स्वर्णिम सवेरा।

बढ़ा कर अपना शक्ति उपार्जन
निश्चित करती खुद का संवर्धन
वृद्घि और विकास के लिये दायित्वों का करती निर्वहन
जागरुकता का देती भरपूर समर्थन
खुद की अपनी
बेड़ियाँ काट
देख अब परचम लहराया तेरा
नारी तुम स्वर्णिम सवेरा।

विश्वास भरा मन में अथाह
भविष्य को करती तुम आगाह
बढ़ती आगे बिना थके
जैसे अविरल नदी प्रवाह
नीरस जीवन में भरती उत्साह
अपनी साहस से तुमने आसमान पर है,नारी उकेरा।
नारी तुम स्वर्णिम सवेरा।

स्वरचित मौलिक
अपराजिता रंजना
पटना (बिहार

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