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राष्ट्रपति पद हेतू दौपद्री मुर्मू का चयन महिला व अनुसूचित जनजाति वर्ग का यथो चित सम्मान हैं – भायल

 

 

  • भायल ने मोदी सरकार के निर्णय की सराहना की

सिवाना – राष्ट्रपति पद हेतु अनुसूचित जनजाति वर्ग से जुड़ी महिला द्रौपदी मुर्मू के चयन के मोदी सरकार के निर्णय पर प्रतिक्रिया देते हुए सिवाना विधायक हमीर सिंह भायल ने कहा कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में ऐसा निर्णय भाजपा में ही संभव है। द्रौपदी मुर्मू जी जैसे जमीन से जुड़ी महिला को देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद के लिए चयनित किया गया द्रौपदी मुर्मू राष्ट्रपति पद के लिये अनुसूचित जनजाति वर्ग की पहली प्रमुख महिला प्रत्याक्षी है। राष्ट्रपति पद के लिए निर्वाचित होने पर वे अनुसूचित जनजाति वर्ग से महिला या पुरुष दोनों ही दृष्टि से, आजादी के बाद भारत की पहली अनुसूचित जनजाति वर्ग की राष्ट्रपति होगी। उनके जीवन के संघों को साझा करते हुए विधायक भायल ने बताया कि विधवा होने के बाद भी उनके संघर्षों और समाज सेवा का लम्बा इतिहास देश के लिए प्रेरणा दाई रहेगा। भायल ने प्रदेश की जनता को बताया कि भाजपा की राजनीति में कथनी करनी का भेद नही है भाजपा राजनीति का वो महाविद्यालय है जहां विभिन्न धर्म जाति के लोग समान रूप से शिक्षा ग्रहण करते है लेकिन कार्यकर्ता के रूप में ऐसे छात्र ही सर्वोच्च पदो पर पहुंचते है जो परिश्रम निष्ठा के बलबुते कुछ कर दिखाने की निष्ठा रखते है। द्रौपदी मुर्मू ने साल 1997 में राइरंगपुर नगर पंचायत के पार्षद चुनाव में जीत दर्ज कर अपने राजनीतिक जीवन का आरंभ किया था। उन्होंने भाजपा के अनुसूचित जनजाति मोर्चा के उपाध्यक्ष के रूप में कार्य किया है। साथ ही वह भाजपा की आदिवासी मोर्चा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की सदस्य भी रहीं है। राष्ट्रपति पद हेतु चयनित द्रौपदी मुर्मू के राजनैतिक सफर पर प्रकाश डालते हुए भायल ने बताया कि वे ओडिशा के मयूरभंज जिले की रायरंगपुर सीट से 2000 और 2009 में भाजपा के टिकट पर दो बार जीती और विधायक बनीं। ओडिशा में नवीन पटनायक के बीजू जनता दल और भाजपा बंधन की सरकार में द्रीपदी मुर्मू को 2000 और 2004 के बीच वाणिज्य, परिवहन और बाद में मत्स्य और पशु संसाधन विभाग में मंत्री बनाया गया था।द्रौपदी मुर्मू मई 2015 में झारखंड की 9 वी राज्यपाल बनाई गई थीं झारखंड की पहली महिला राज्यपाल बनने का खिताब भी द्रौपदी मुर्मू के नाम रहा। साथ ही वे किसी भी भारतीय राज्य की राज्यपाल बनने वाली पहली आदिवासी भी हैं।

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