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जीवन को शक्तिशाली बनाने के लिए प्रवचन नहीं,

जीवन को शक्तिशाली बनाने के लिए प्रवचन नहीं, पहले सूत्र फिर प्रयोग जरूरी : परम आलय  

शिविर में असम के राज्यपाल गुलाबचंद कटारिया पहुंचे

नए दृष्टिकोण वाला शिविर अब १ दिन और शेष

4 हजार शहरवासी हर रोज शिविर में ले रहे है हिस्सा

उदयपुर सन टू ह्यूमन फाउंडेशन की ओर से शहर के चित्रकूट नगर-भुवाणा स्थित महिला थाना के पास ओपेरा गार्डन में सुबह 6.30 से 8.30 बजे तक आयोजित “सही आहार, सही व्यायाम, सही ध्यान” पर आधारित छ : दिवसीय नि:शुल्क नए दृष्टिकोण वाले शिविर में पांचवें दिन शनिवार को वासना, क्रोध, ईष्र्या, लोभ, घृणा मौजूद है जितनी पहले थी। जब तक प्रवचन जीवन का अनुभव व आचरण न बन जाएँ, तब तक प्रवचन अधूरा ज्ञान हैं आदि विषयों पर जानकारी देकर कई प्रकार के योग की क्रियाएं करवाई गई।

शिविर संयोजक डॉ. महावीर चपलोत एवं संजय भण्डारी ने बताया कि शिविर में असम के राज्यपाल गुलबाचंद कटारिया ने शिविर में हिस्सा लिया। शिविर संयोजक महावीर चपलोत ने महामहिम कटारिया का स्वागत किया। इस दौरान कटारिया ने कहां कि पूज्य परम आलयजी जीवन को सुंदर बनाने की इतनी सरल और अदभुद शैली के प्रयोग करा रहें जिससे लाखों लोगो मे रूपांतरण आ रहा है। इस दौरान राज्यपाल कटारिया को बहुमूल्य पुस्तक प्रवचन नही प्रयोग भेट की। शिविर संयोजक संजय भण्डारी ने बताया कि शिविर में उदयपुर शहर के करीब 4 हजार शहरवासी शिविर में भाग ले रहे है। शहरवासियों से खचाखच भरे गार्डन में सुबह एक साथ सभी योग क्रियाएं सहित कई प्रकार के आसनों का आनन्द ले रहे है।

समाज सेवी माँ मैत्रेयी एवं तारिणी ने बताया कि शनिवार को शिविर के पांच दिन पूर्ण हो चुके है एवं कई शहरवासी इस शिविर से लाभांवित हो रहे है। रविवार को अंतिम शिविर लगेगा। शिविर में परम आलयजी ने कहा कि आधुनिक तकनीक और विज्ञान ने आज मनुष्य की अंगुली पर जानकारी की भरमार लाकर रख दी है। आज मोबाइल, टीवी, रेडियो, न्यूज़पेपर, मोटिवेशनल साहित्य के द्वारा कई प्रकार की जानकारी आसानी से इक_ा की जा सकती है, लेकिन वह इंफॉर्मेशन अगर जीवन का आचरण न बने तो वह मात्र मनुष्य की स्मृति में जानकारी का भंडार बनकर रह जाती है। जब तक इस जानकारी को प्रयोग द्वारा जीवन को सुंदर बनाने के लक्ष्य से अनुभव में न उतारा जाएगा, तब तक मानवता के लिए इससे बड़ा अभिशाप और कुछ भी नहीं है। अगर कोई मनुष्य ईमानदारी से अपने जीवन का विश्लेषण करे तो पाएगा कि सदियों से चलते आए प्रवचनों से उसके भीतर कोई रूपांतरण नहीं आ रहा है। आज भी उसमें उतनी ही वासना, क्रोध, ईष्र्या, लोभ, घृणा मौजूद है जितनी पहले थी। जब तक प्रवचन जीवन का अनुभव व आचरण न बन जाएँ, तब तक प्रवचन अधूरा ज्ञान हैं और वे प्रयोग में लाने पर ही आचरण बन सकते हैं। बौद्धिक तल पर किसी सूत्र को सुन या पढ़ लेना एक बात होती है और अन्य केंद्रों द्वारा उसे अनुभव कर “समझ” में बदलना बिल्कुल दूसरी। इसलिए सबसे पहले तो आपका स्वागत करूँ कि अपने जीवन को शक्तिशाली बनाने में आपकी उत्सुकता है और प्रयोग व अनुभव के जगत में प्रवेश करने की आकांक्षा भी। किंतु प्रयोग में प्रवेश करने से पूर्व उसके पीछे छिपे सूत्रों को समझना अत्यंत महत्वपूर्ण है। मन और चेतना को समझने के लिए किसी का सानिध्य चाहिए।

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